प्रश्न : गुरुजी, मैंने सुना है कि अगर चींटियों को, मकोड़ों को या जीव जंतु को मारा तो पाप होता है। पर जब मैं गाड़ी चलाता हूँ तो गाड़ी में अनेक चीड़ी मकोड़े और जीव जंतु मर जाते हैं ।तो क्या इसका पाप मुझे लगेगा?
पाप भाव में लगता है कृत्य में नहीं
गुरुदेव : देखो, भाव में पाप लगता है, कृत्य में नहीं। एक डाक्टर किसी को पेट का ऑपरेशन करता है, ऑपरेशन करते करते आदमी मर जाता है मान लो। तो डाक्टर को पाप लग जाएगा उसका? इसका भाव क्या था, उसको बचाने का था, मगर मर गए, तो उनको पाप लग गया? नहीं। इस तरह से जाने अनजाने कितने, पता नहीं, कितने सारे जीव जन्तु मर रहे हैं। शरीर में पचास हज़ार तरह के कीड़े हैं। एक नहीं, दो नहीं, आपके माथे में तीन तरह के अलग अलग कीटाणु हैं। इस तरह से शरीर में कई तरह के कीटाणु आते हैं, जाते हैं, हवा में हैं, साँस लेते हैं तो कई कीटाणु मर जाते हैं, बोलते हैं तो कई कीटाणु मरते हैं। वो क्षण भंगुर है, जीवन उनका। जीना मरना यह तो इस तरह चलता रहता है।
न कोई मारने वाला है न कोई मरने वाला है
आपके होने मात्र से कई कीटाणु मरते हैं, गाड़ी चलाने की बात तो छोड़ो ! रात को तो सो रहे हो, तुम्हारे पता नहीं पेट में कितने सारे कीड़े मर रहे हैं। तो पाप इस तरह से नहीं होता ।मारना है कर के द्वेष से, क्रोध से, नफ़रत से किसी चीज़ को जब हम मारते हैं तो वो पाप लगता है हमें। जाने अनजाने जीव जन्तु पैदा होते हैं, मरते हैं, कभी आप से होता है, कभी दूसरे किसी से होता है, इसीलिए वो सब पाप नहीं लगता वो। इसका मतलब यह नहीं कि तुम जान बूझ के कुछ मारते जाओगे जीव जन्तुओं को। नहीं !
नायं हन्ति न हन्यते !
अर्जुन को यही भगवान ने कहा, यहाँ कोई मारने वाला नहीं, न कोई मरने वाला है, सब आत्मरूपी संसार है।
संकलन एवं संपादन : रत्नम सिंह
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित