प्रेम जीवन का एक ऐसा रहस्य है जिसे अपने लिए सभी लोग चाहते हैं पर बहुत कम लोग इसे दूसरों पर अभिव्यक्त करते हैं। हम बहुत से तरीकों से अपना प्रेम प्रदर्शित करने का प्रयास करते हैं परंतु फिर भी यह एक रहस्य ही बना हुआ है। और ऐसा बहुत दुर्लभ होता है कि प्रेम को कोई व्यक्ति उसकी संपूर्णता के साथ अभिव्यक्त कर सके।
यीशु (जीसस) और प्रेम | Jesus and Love
जीसस व प्रेम एक दूसरे के पर्याय हैं। यदि आप प्रेम कहते हैं तो आपको जीसस कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती और यदि आप जीसस कहते हैं तो इसका मतलब होता है प्रेम। जीसस ने एक बार कहा था, “यदि आप ईश्वर को मेरे नाम से पुकारना चाहें, तो जो कुछ भी आप माँगेंगे वो आपको मिल जाएगा, क्योंकि ईश्वर प्रेम है।” जीसस प्रेम को इतनी पूर्णता के साथ अभिव्यक्त कर पाते हैं। जो कुछ भी थोड़ी बहुत झलकियाँ आप अपने आस-पास देख पाते हैं वो उसी पूर्णता, उसी परम अव्यक्त भाव की अभिव्यक्ति है जिसे हमारा संपूर्ण जीवन व्यक्त करने के लिए व्याकुल रहता है ।
प्रेम आपको कमजोर बनाता है, परन्तु आपको एक स्वर्गिक अनुभूति से सराबोर कर देता है। मजबूत से मजबूत व्यक्ति प्रेम में कमजोर हो जाता है फिर भी इस सकल ब्रह्मांड में प्रेम ही प्यार सबसे बड़ी ताकत है। चूंकि प्रेम आपको कमजोर बनाता है इसलिए यह डरावना भी है। हजारों में, कुछ ही लोग यीशु का अनुसरण करते थे। कई लोगों ने उन्हें सुना, लेकिन कुछ ही लोग उनके पास आए। कई चमत्कार करने के बाद भी, केवल मुट्ठी भर लोग ही उन्हें पहचान सके।
यीशु लोगों को एक-दूसरे के विरुद्ध क्यों खड़ा करना चाहते है ? | Why Jesus want to put one against other
यीशु ने कहा, "मैं मनुष्य के विरूद्ध मनुष्य को, पिता के विरुद्ध बेटे को, मां के विरुद्ध बेटी को खड़ा करने के लिए आया हूं।" बहुत कम लोग वास्तव में समझते हैं कि इसका क्या मतलब है। आप किसके बारे में सोचते हैं कि आपका मित्र वास्तव में आपका मित्र नहीं है क्योंकि वह बहुत से मामलों पर आपके विश्वास को मजबूत बनाता है परंतु आत्मा को कमज़ोर कर देता है। "मैं लोगों को एक-दूसरे के विरुद्ध करने के लिए आया हूं, मैं आग लगाने के लिए आया हूं, शांति के लिए नहीं ।" यीशु ने ऐसा कहा क्योंकि वह नींद की गहराई को जानते थे। जब आप कुछ अच्छी और शांतिपूर्ण बातें करते हैं, तो सब लोग सोने के लिए जाते हैं और जब कुछ सनसनीखेज होता है, तो लोग जागते हैं और ध्यान से सुनते हैं। इसी प्रकार से मानव का मन संचालित होता है। और यीशु ने इस बात के लिए बहुत प्रयास कि लोग अपने मन के पार जा सकें और अपनी आत्मा में, जीवन के स्रोत में, स्व में प्रवेश कर सकें। आप अपनी एक सीमित पहचान को तोड़कर अपने भीतर की दिव्यता को पहचानते हैं। आप सिर्फ एक इंसान से कहीं ज्यादा हैं; आप दिव्यता का हिस्सा हैं और आप परमात्मा की सत्ता के वारिस हैं और वह सत्ता ठीक तुम्हारे सामने ही है, तुम्हारे मन के भीतर।
सर्वव्यापी प्रेम | Omnipresent love
प्रेम का कोई नाम नहीं होता और न ही कोई रूप, प्रेम तो एक सार है और फिर भी यह बहुत ठोस है। इसका कोई नाम या रूप नहीं है लेकिन सभी नामों और सभी रूपों में प्रकट होता है। यह सृजन का रहस्य है। यदि आपके पास इस प्रेम को देखने का नजरिया है तो आप इस सृष्टि में हर जगह प्रेम को देख सकते हैं। एक पक्षी को देखें उसके घोंसले को देखें, उस घोंसले में बैठे हुए उसके नन्हे से बच्चे को देखें, और देखें कि वो नन्हा सा पक्षी कैसे अपनी माँ के आने का इंतजार करता है। देखें कि कैसे उस नन्हे से पक्षी की माँ उसे बड़े ही प्रेम से दाना चुगाती है। यह सब प्रेम ही तो है। इसी तरह मछलियों में भी प्रेम है। आकाश में प्रेम है। जमीन पर प्रेम है और बाह्य जगत में भी हर तरफ प्रेम ही है।
हर रूप प्रेम से भरा है और हर नाम प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है। इसी तरह यीशु और परमपिता एक हैं। परमपिता अपनी इस सृष्टि के साथ एक हैं। भारत में सृजन और सृजनकर्ता तुलना नृत्य और नर्तक से की जाती है। नर्तक के बिना नृत्य नहीं हो सकता। नर्तक नृत्य के हर थिरकन में मौजूद होता है और इसी प्रकार सृजनकर्ता भी अपने हर सृजन में मौजूद रहता है। यही है जिसे हम सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान कहते हैं। यदि ईश्वर सर्वव्यापी है तो वह हर जगह मौजूद है, है ना? निर्माता, यदि सृजन से अलग है, तो वह अपने सृजन में मौजूद नहीं है। तो वह सर्वव्यापी नहीं है। और इससे भगवान की पूरी परिभाषा ही गलत हो जाती है।
प्रेम हर जगह मौजूद है, लेकिन कहीं-कहीं यह पूर्ण अभिव्यक्ति प्राप्त कर पाता है। और अपनी आत्मा का ज्ञान आपको प्रेम की संपूर्ण अभिव्यक्ति की ओर ले जाता है, यह आपके मन में प्रेम का पुष्प खिलाता है। यह आपको जीवन की छुद्रताओं से ऊपर उठा देता है। एक ही दिव्यता सभी को पोषित करती है न तो अजगर काम करने के लिए जाता है और न ही पक्षियों को श्रम करना पड़ता है। हर किसी का ख्याल रखा जाता है सब कुछ का ध्यान रखा जाता है।
यीशु ने कहा था, "जितना मैं आपसे प्यार करता हूं, उतना ही प्रेम आप एक दूसरे से करो।" प्रेम के उस महान अवतार को देखने के लिए आपको और क्या चाहिए?
- गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी
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