यह लेख 29 मार्च 2018 को, महावीर जयंती के उपलक्ष्य में, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी द्वारा दिए गए एक व्याख्यान पर आधारित है !
आज एक महान संत, महावीर का जन्म दिवस है जिन्होंने जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया। वे भारत के सर्वाधिक प्रबुद्ध संतो में से एक और जैनधर्म के 24वें तीर्थंकर हैं ( तीर्थंकर, जैन मान्यताओं के अनुसार किसी प्रबुद्ध अभिज्ञात आत्मा को दिया गया नाम है। )
महावीर के उपदेश
महावीर द्वारा दिया गया मुख्य सिद्धांत है “अहिंसा”। उनका मानना था कि किसी को भी संसार में किसी के प्रति भी हिंसक होने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने अनेकांतवाद के बारे में बताया, जिसका अर्थ है कि बहुत सारी सम्भावनाएँ हैं। सम्पूर्ण विश्व ही सम्भावनाओं से भरा है। सिर्फ़ एक ही रास्ता नहीं है। इस ज्ञान की आज बहुत आवश्यकता है । अगर लोग यह बात समझ लें तो दुनिया में कोई आतंकवाद और और कट्टरता नहीं होगी।
स्यादवाद : संभावनाएं अनंत हैं
उन्होंने स्यादवाद भी बताया, जो बुद्धि को समझने के लिए सबसे वैज्ञानिक तरीक़ों में से एक है । स्यादवाद बताता है कि “संभवतः कुछ ऐसा है जिसके बारे में मैं अनभिज्ञ हूँ।” अगर कोई कहे कि “ यह ऐसा ही है, मुझे सब पता है” , तो यह उचित नहीं है।
इसीलिए महावीर ने स्यादवाद की चर्चा की माने ‘संभवतः यह कुछ और भी हो सकता है’। कुछ भी सम्भव हो सकता है । यह एक परिपक्व बुद्धि का लक्षण है; संभावनाओं को अस्वीकार करना एक अपरिपक्व बुद्धि को ही दर्शाता है। इसीलिए वह अपने प्रत्येक विचार में “ संभवतः” या “शायद “जोड़ देते थे; यह दर्शाने के लिए कि उसमें और अधिक खोज की सम्भावनाएँ हैं। अगर आप कहते हैं कि यह ऐसा ही है तो आप इसको एक निश्चितता बना रहे हैं। संसार में कुछ भी निश्चित नहीं है, सदा ही कुछ और सम्भावनाएँ हैं।
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महावीर, बुद्ध के समकालिक थे
मेरा यह मानना है कि महावीर और बुद्ध एक ही नगर से थे। वे एक दूसरे के बारे में जानते थे किंतु कभी मिले नहीं थे। किसी ने उनसे पूछा “ आप कभी मिले क्यों नहीं?”
तो उन्होंने उत्तर दिया “ इसकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हम पहले ही जुड़े हुए हैं।”
आप जानते हैं , आत्मज्ञान की स्थिति में, अगर रास्ते अलग हैं तो भी, आत्मन एक ही है। कोई दूरी है ही नहीं।
इतिहासकारों में एक मत यह भी है कि वो दोनों मिले ज़रूर थे लेकिन उन्होंने आपस में बिल्कुल भी बात नहीं की। उनका बस एक दूसरे से सामना हुआ और अपने अपने रास्ते पर आगे बढ़ गए।
यहाँ भी यही कहा गया है कि उनमें मौखिक वार्तालाप की कोई आवश्यकता नहीं थी। दिल से दिल का मिलन हो या आत्मा से आत्मा का, बातें करने की कोई दरकार नहीं होती। जब दिल मिलते हैं तो भाषा की कोई दीवार नहीं रहती, कोई शब्द या कुछ और बीच में नहीं आते।
‘यह कुछ भी नहीं’ और ‘यही सब कुछ है’ : बुद्ध और महावीर के सिद्धांत
बुद्ध ने शून्यता के बारे में बताया, महावीर ने “स्वयं” / “आत्मन”के बारे में बताया। बुद्ध ने कहा “स्वयं” कुछ है ही नहीं, महावीर ने कहा जो कुछ भी है सब स्वयं ही है। स्वयं में प्रतिष्ठित हो जाओ; क्योंकि आत्मा का मूल स्वभाव ही प्रसन्नता है ।
- गुदेरुव श्री श्री रवि शंकर
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