संस्कृति

गुरु ग्रह का मकर राशि में प्रवेश

12 वर्ष में एक बार घटती है ये घटना !

20 नवम्बर को देवगुरु बृहस्पति धनु राशि छोड़कर मकर राशि में प्रवेश कर रहे  हैं | यह ज्योतिषीय घटना 12 साल में 1 बार घटती है | देवगुरु वृहस्पति सभी ग्रहों में से सबसे शुभ ग्रह बताये गए हैं | इसलिए जब यह अपनी नीच राशि में प्रवेश करते हैं तो हमारे जीवन में श्रद्धा की, विश्वास की, सकारात्मकता की, ज्ञान की और विवेक की कमी होने लगती है | हम कुछ ऐसे निर्णय  ले लेते हैं जिससे हमारे जीवन में संघर्ष और बढ़ जाता है | हमें अपने ज्ञान पर संदेह होता है, हमें गुरु पर संदेह होता है| अगर कुछ न भी हो तो हमें स्वयं पर संदेह होने लगता है | इसीलिए ज्योतिषियों द्वारा इस घटना को शुभ घटना नहीं बताया गया है | 

इस गोचर को बहुत ही अशुभ गोचर बताया गया है | लेकिन अच्छी बात यहाँ पर ये है कि इस बार मकर राशि में ये जो गुरु का गोचर हो रहा है ,ये केवल गुरु गोचर ही नहीं है | यहाँ पर इस बार शनि देव पहले से ही उपस्थित होंगे गुरुदेव का स्वागत करने के लिए ! तो ये शनि और गुरु की जो महायुति है, इससे एक बहुत ही सुन्दर “नीच भंग राजयोग” का निर्माण होता है अर्थात जब भी गुरु मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो ये सब होता है लेकिन शनि की उपस्थिति से ये चीज़ें इतनी खराब नहीं रह सकतीं |

शनिदेव कारक हैं, प्रतीक हैं- हमारे जीवन में अनुशासन के, कड़ी मेहनत के, हमारे जीवन में सहजता के | तो अगर हम शनिदेव के बताये हुए रास्ते पर चलते हैं - अपने जीवन में सहजता लाते हैं, कड़ी मेहनत करते हैं, अपने आप को नियमों से बांधते हैं, अनुशासन से चलते हैं तो ये गोचर भी राजयोग में परिवर्तित हो सकता है |

इसी के साथ - साथ ये एक बहुत ही सुन्दर योग का निर्माण करता है, जिसे हम कहते हैं - “धर्म कर्माधिपति योग” | काल पुरुष की कुण्डली में ऐसा बताया गया है कि ‘गुरु’ धर्म के स्वामी हैं और ‘शनि’ कर्म के स्वामी हैं | तो जब गुरु और शनि दोनों साथ में मकर राशि में आते हैं तो एक उच्च कोटि का धर्म कर्माधिपति योग बनता है | अर्थात जो धर्म पर चलने वाले हैं, जो धर्म के कार्यों को आगे बढ़ाने वाले हैं, जो अपने जीवन में नैतिकता का, मूल्यों का पालन करते हैं उन सभी के लिए ये एक बहुत ही उत्तम समय हो सकता है |

और आध्यात्मिक साधकों के लिए एक और खुशखबरी ये है कि जब मकर संक्रांति पर सूर्यदेव भी मकर राशि में  प्रवेश करेंगे तो ज्ञान के प्रतीक, वैराग्य के प्रतीक, आत्मा के प्रतीक और तपस्या के प्रतीक सूर्यदेव भी साथ में जुड़ जाएंगे | तो ये समय बहुत ही उत्तम समय है अपनी साधना में प्रगति करने का !

ये समय जहाँ साधकों के लिए बहुत अच्छा है, वहीं जो लोग नेतृत्व क्षमता में कार्यरत हैं, राज कारण में हैं, उन सबके लिए थोड़ा संघर्षपूर्ण हो सकता है | इस वक़्त बहुत आवश्यक रहेगा कि जो आपके साथ, आपके साथी हैं , कार्यकर्त्ता हैं, उनके साथ बहुत विनम्रता से रहें | उनका ख़ास ख्याल रखें | उनकी मदद से ही आप इस संघर्ष से निकल सकते हैं और सफलता के द्वार तक पहुँच सकते हैं |

अगर कुछ उपाय करना चाहते हैं तो सभी के लिए इस दिनों में गुरु मन्त्र का जाप करना, अपने गुरु के आदेशों का , उनके दिए हुए मार्गदर्शन पर चलना | इस गुरु गोचर के दौरान, कड़ी मेहनत करना और अपने से छोटों से विनम्रता पूर्वक बात करना , ये बहुत आवश्यक रहेगा | 

यह गोचर 5 अप्रैल तक चलने वाला है |

यह समय स्वाध्याय के लिए बहुत उत्तम है तो एक बार अपने भीतर जाकर देखें कि हम कहाँ सही जा रहे हैं और कहाँ गलत ?

ये समय अपने सभी साथियों को जोड़ कर रखने, उन सभी की भावनाओं को समझने और एक साथ आगे बढ़ने के लिए उत्तम है | इसके बाद जब फिर से गोचर होगा और गुरु कुम्भ राशि में आयेंगे तो फिर से दौड़ का समय शुरू हो जाएगा, हम फिर से विस्तार की बात करेंगे | लेकिन यह समय स्वाध्याय, आत्मचिंतन और अनुशासन का है |

यह लेख वैदिक धर्म संस्थान, आर्ट ऑफ़ लिविंग के जाने- माने ज्योतिषविद और वास्तुशास्त्री डॉ.आशुतोष चावला के व्याख्यान पर आधारित है !

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