इमली के फायदे | Benefits of Imli
इमली – पोषक तत्वों से भरपूर
आम तौर से पाए जाने वाले इमली को अरबी और फारसी भाषा में दिए गए - हिंदी तामर और भारतीय खजूर सही मायने में उद्बोधक नाम है। भूरे रंग की नाज़ुक फली के अंदर जो मांसल खट्टा फल होता है उसमे टारटारिक एसिड और पेक्टिन समाविष्ट है।
वैकल्पिक नाम |Alternate Names
इमली का वनस्पति शास्त्र में नाम: तामरिंदस इंडिका | Tamarind Indica
इमली का अंग्रेजी नाम: तामरिंद | Tamarind
इमली का संस्कृत नाम: अम्लिका
इमली के फायदे | Benefits of Imli
आमतौर पर महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में क्षेत्रीय व्यंजनों में एक स्वादिष्ट मसाले के रूप में इमली का प्रयोग किया जाता है। खास तौर पर रसम, सांभर, वता कुज़ंबू (Vatha Kuzhambu), पुलियोगरे इत्यादि बनाते वक्त इमली इस्तेमाल होती है और कोई भी भारतीय चाट इमली की चटनी के बिना अधूरी ही है। यहां तक कि इमली के फूलों को भी स्वादिष्ट पकवान बनाने के उपयोग में लिया जाता है।
इसके पत्ते शरीर को शीतलता प्रदान करते हैं एवं अपित्तकर हैं और पेट के कीड़ों को नष्ट करने में भी मदद करते हैं। इसके अलावा, इसके पत्तों को पीलिया के इलाज में भी उपयोग में लाया जाता है। इमली के पेड़ की छाल एक स्तम्मक के रूप में काम आती है। इमली के फल का गूदा पाचन प्रणाली को शीतलता प्रदान करता है एवं रेचक और रोगाणु रोधक (anti-septic) भी होता है।
- पाचन विकार | Digestive Disorders
- स्र्कवी | Scurvy (Vitamin C Deficiency)
- सामान्य सर्दी-जुकाम को दूर करने के लिए | Common Cold
- जलने पर | Burns
पके हुए फल का गूदा पित्त्त की उलटी, कब्ज और गैस की समस्या, अपचन के इलाज मे लाभदायक है। यह कब्ज़ मे भी लाभकारी है। पानी के साथ इसके गूदे को कोमल करके बनाया हुआ निषेध भूख मे कमी, भोजन ग्रहण की इच्छा मे कमी होने पर लाभकारी है। इमली के दूध का पेय भी पेचिश के इलाज मे काफी लाभकारी है।
इमली में विटामिन सी की मात्रा प्रचुर होती है और यह स्र्कवी को रोकने और उसके इलाज में लाभदायक है।
इमली और काली मिर्च का रसम, दक्षिण भारत मे सर्दी-जुकाम के इलाज के लिये इसे प्रभावशाली घरेलू नुस्खा माना जाता है।
जलने पर
इमली की कोमल पत्त्तिया जलने का घाव के इलाज मे काफी लाभकारी है। उसे एक ढके हुए बर्तन पर आग से गरम करते है| फिर उसे अच्छे से पीस कर उसे छान लेते है जिससे रेतिले पदार्थ निकल जाये (अलग हो जाए)। छानने के बाद उसे तिल के तेल के साथ मिलाकर जले हुए भाग पर लगाया जाता है। इससे घाव कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।
यह लेख द आर्ट ऑफ़ लिविंग के वरिष्ठ आयुर्वेद डॉक्टर निशा मणिकांतन द्वारा लिखा गया है।