योग के बारे में (yoga)

मन का स्वभाव | Temperament of mind

मन पूरे समय बाहरी संसार में उलझा रहता है। जब आँखें खुली होती हैं तब मन कुछ न कुछ देखने, सुनने, सूंघने, स्पर्श करने और स्वाद लेने में फंसा रहता है। जागृत अवस्था में मन इन्द्रियों के सतत क्रियाकलाप में लिप्त रहता है अथवा निद्रा या स्वप्नावस्था में चला जाता है, जहाँ आप पूरी तरह से विमुख होते हैं। निद्रा और स्वप्न में भी भूतकाल की वही स्मृति आती है। ऐसे में आप अपने ही मन के ग्रास बन जाते हैं, आप कभी भी अपने बिखरे हुए अस्तित्व को समेटकर शांत स्वभाव में स्थिर नहीं हो पाते हैं।

योग क्या है ?

यदि आप कभी गाँव के भोले-भाले लोगों को सिनेमा देखते हुए देखें तो आप पाएंगे कि वो उसमे पूरी तरह से खो जाते हैं। उनके लिए उस क्षण में सिनेमा के अलावा किसी और का अस्तित्व नहीं रह जाता। एक बार एक गाँव में लोग साथ बैठकर सिनेमा देख रहे थे, लोगों ने देखा कि खलनायक फिल्म में हीरो की बेरहमी से पिटाई कर रहा था, यह देखकर लोग पत्थर और लाठियां लेकर सिनेमा के मंच की ओर दौड़ पड़े।

जब आप कुछ समय खाली बैठते हैं तो आपकी पीठ, पैर आदि दुखने लगते हैं, पर यदि आप फिल्म में डूबे हो तो ऐसा नहीं होता, आपको अपने शरीर की सुध भी नहीं रहती, आपको पता भी नहीं चलता की आप बैठे हैं। ऐसा क्यों होता है? क्योंकि आपकी चेतना उस रूप में, उस वृत्ति में ढल जाती है।

1.2 योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः

चेतना भिन्न रूप ले लेती है, मन को पांचो इन्द्रियों से युक्तिपूर्वक मुक्त कर स्वयं के समग्र स्वरुप में स्थित होना ही योग है।

1.3 तदा दृष्टु: स्वरूपेऽवस्थानम्

दृष्टा के स्वरुप में स्थित होना, अपने सच्चिदानंद स्वरुप में स्थित होना ही योग है। जब भी आप प्रसन्नता, उत्साह और आनंद का अनुभव करते है, तो आप जाने अनजाने अपने आत्म स्वरुप में होते हैं।

1.4 वृत्तिसारूप्यम् इतरत्र

अन्यथा आप मन की विभिन्न वृत्तियों के साथ रहते हैं, चेतना मन की विभिन्न वृत्तियों में ही रमण करती रहती हैं।

मन की वृत्तियाँ कोनसी हैं?

1.5 वृत्तयः पञ्चतय्यः क्लिष्टा अक्लिष्टाः

मन की वृत्तियाँ पांच प्रकार की है। कभी-कभी यह वृत्तियाँ कठिनाई प्रकट करती हैं और कभी-कभी नहीं करती।

1.6 प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः

मन की पांच तरह की वृत्तियाँ हैं-

  • प्रमाण
  • विपर्यय
  • विकल्प
  • निद्रा
  • स्मृति

मन निरंतर किसी न किसी वृत्ति में उलझा रहता है। जब भी आप तर्क वितर्क से प्रमाण खोजने, किसी गलत धारणा में अथवा कपोल कल्पना या भूतकाल की स्मृति और निद्रा में भी नहीं होते तब योग होता है। जब भी आप सुन्दर प्रकृति के साथ होते हैं, अथवा क्रिया प्राणायाम के बाद प्राण ऊर्जा के उच्च स्तर को महसूस करते हैं तब मन इन पांचो वृत्तियों से मुक्त होता है। और आप स्वयं में स्थित होते है और यही योग है।

 

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(यह ज्ञान पत्र गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के पतंजलि योग सूत्र प्रवचन पर आधारित है। पतंजलि योग सूत्रों के परिचय के बारे में अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें।)

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