योग के बारे में (yoga)

समाधि के चार प्रकार। Four Types of Samadhi In Hindi

पतंजलि आगे कहते हैं:

सूत्र 17:  वितर्कविचारानंदास्मितारूपानुगमात सम्प्रज्ञातः

वितर्कानुगम समाधि

वितर्क :- जहाँ मन में सत्य को जानने के लिए और संसार को देखने के लिए एक विशेष तर्क होता है।

तीन तरह के तर्क हो सकते है - तर्क, कुतर्क, वितर्क।

कुतर्क का अर्थ है गलत तर्क, जिस में आशय ही गलत होता है। ऐसी स्थिति में तर्क लगाने का एकमात्र उद्देश्य दूसरे में गलती  निकालना होता है, तुम्हें  अपने भीतर पता होता है कि यह बात सही नहीं है, फिर भी तर्क के द्वारा तुम उस बात को सही सिद्ध कर देते हो। उदाहरणतः आधे दरवाज़े के खुले रहने का अर्थ है आधे दरवाज़े का बंद रहना; इसलिए पूरे दरवाज़े के खुले रहने का अर्थ है पूरे दरवाज़े का बंद होना! भगवान प्रेम हैं, और प्रेम अंधा होता है; इसलिए, भगवान अंधे हैं!

वितर्क एक विशेष तरह का  तर्क होते हैं, अभी जैसे हम तार्किक रूप से वैराग्य को समझ रहे थे पर ऐसे सुनने समझने की चेतना में प्रभाव हो रहा था, ऐसे विशेष तर्क से चेतना उठी हुई है, तुम एक अलग अवस्था में हो, यही समाधि है।  

समाधि का अर्थ है समता,'धी' अर्थात बुद्धि, चेतना का वह हिस्सा जिससे तुम समझते हो। जैसे अभी हम सभी समाधि की अवस्था में  हैं, हम एक विशेष तर्क से चेतना को समझ रहे हैं।  

 

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तर्क किसी भी तरह से पलट सकता है, तुम तर्क को इस तरफ या दूसरी तरफ, कहीं भी रख सकते हो, तर्क का कोई भरोसा नहीं होता। परन्तु वितर्क को पलटा नहीं जा सकता है।  

जैसे किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए और तुम वहां खड़े हो, मान लो की तुम उनसे भावनात्मक रूप से नहीं जुड़े हो, अभी तुम्हें  पता है कि इस व्यक्ति का जीवन अब नहीं है और यह अंतिम सत्य है। ऐसे क्षण में तुम्हारी चेतना एक अलग अवस्था में होती है।  

जैसे कोई फिल्म जब समाप्त होती है तब कुछ समाप्त हो जाने का भाव रहता है, जब लोग किसी सिनेमाघर से बाहर निकलते  हैं, तुम देखोगे वहां सभी एक जैसी चेतना की अवस्था से बाहर आते हैं। ऐसे ही किसी संगीत समारोह से जब लोग बाहर आते हैं तो उन सभी में एक भाव रहता है कि कुछ समाप्त हो गया है। एक शिविर के समाप्त होने पर भी लोग एक चेतना की अवस्था, कि सब समाप्त हो गया है,ऐसे लौटते है।  

ऐसे क्षण में मन में एक विशेष तर्क होता है, एक अकाट्य तर्क, जो तुम्हारी चेतना में स्वतः ही आ जाता है। सब कुछ बदल रहा है, बदलने के लिए ही है। सब समाप्त हो जाना है, ऐसे वितर्क चेतना को उठा देती है। इसके लिए आँखें बंद करके बैठने की भी आवश्यकता नहीं, आँखें खुली हो तब भी 'मैं चेतना हूँ' ऐसा भाव और सब कुछ खाली है, तरल है। यह पूरा संसार एक क्वांटम मैकेनिकल फील्ड हैं, जो भी है- यह वितर्क है।  

सम्पूर्ण विज्ञान तर्क पर आधारित होता है, संसार का एक क्वांटम फील्ड होना अकाट्य वितर्क है,ऐसी अवस्था वितर्कानुगम समाधि है।

विचारानुगम समाधि

विचार में सभी अनुभव आ जाते हैं, सूंघना, देखना, दृश्य, सुनना - जो भी तुम ध्यान के दौरान देखने, सुनने आदि  का अनुभव करते हो, वह सभी विचारानुगम समाधि है, विचारों के सभी अनुभव और विचारों के आवागमन को देखना, सभी इसी में आते है।  

इस समाधि में विचारों की दो अवस्थाएं हो सकती है-

पहले तरह के विचार तुम्हें  परेशान करते हैं।  

दूसरी तरह के विचार तुम्हें  परेशान नहीं करते हैं परन्तु तुम्हारी चेतना में घूमते रहते हैं और तुम उनके लिए सजग भी होते हो। तुम समाधि में होते हो, समता में होते हो, पर उसी समय  विचार भी आते जाते रहते हैं, यह ध्यान का हिस्सा है। विचार और अनुभव बने रहते हैं, यह विचारानुगम समाधि है।

आनन्दानुगम समाधि

आनन्दानुगम समाधि अर्थात आनंद की अवस्था, जैसे कभी तुम सुदर्शन क्रिया करके उठते हो या सत्संग में भजन गाते हुए आनंदित हो उठते हो, तब मन एक अलग आनंद की अवस्था में होता है। ऐसे में चेतना उठी हुई होती है, पर आनंद होता है। ध्यान की ऐसी आनंदपूर्ण अवस्था आनन्दानुगम समाधि है।

आनंद में जो समाधि रहती है वह आनन्दानुगम समाधि है, यह भी एक ध्यानस्थ अवस्था है। ऐसे ही विचारानुगम समाधि में तुम कुछ आते जाते अनुभव, भावों और विचारों के साथ होते हो। जब तुम एक अकाट्य वितर्क के साथ समाधिस्थ होते हो तब वह वितर्कानुगम समाधि है।  

अस्मितानुगम समाधि

इनके उपरान्त चौथी समाधि है, अस्मितानुगम समाधि, यह ध्यान की बहुत गहरी अवस्था है। इसमें  तुम्हें  कुछ पता नहीं रहता है, केवल अपने होने का भान रहता है। तुम्हें  बस यह पता होता है कि तुम हो, पर यह नहीं पता होता की तुम क्या हो, कहाँ हो, कौन हो।  

केवल स्वयं के होने का भान रहता है, अस्मिता- मैं हूँ, इसके अलावा कुछ और नहीं पता होता है। यह समाधि की चौथी अवस्था है, अस्मितानुगम समाधि।  

इन चारों समाधि की अवस्थाओं को सम्प्रज्ञाता कहते हैं, अर्थात इन सभी में चेतना का प्रवाह होता है,जागरूकता का प्रवाह होता है।  

अब इन समाधियों को कैसे अनुभव कर सकते है? जानने के लिए पढ़िए अगला ज्ञान पत्र :

 

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(यह ज्ञान पत्र गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के पतंजलि योग सूत्र प्रवचन पर आधारित है। पतंजलि योग सूत्रों के परिचय के बारे में अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें। )

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