आप वह हैं जो आप खाते हैं। यही प्रमुख यौगिक दृष्टिकोण है जो मानव स्वास्थ्य के बारे में समग्र राय रखता है ; शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तरों पर। पतंजलि योग सूत्र का प्राचीन आलेख योग के आन्तरिक मूल्यों में से एक के रूप में 'अहिंसा' के सिद्धांत को बताता है। मांसाहार पर नैतिक चर्चा, जानवरों के प्रति क्रूरता, जानवरों से इंसानों तक बिमारियां, जानवरों की हत्या के दौरान विष स्राव और मांसाहार उत्पादन में आर्थिक व्यवस्था की कमी कुछ निर्विवाद सत्य हैं। इसके अलावा, मानव शरीर और उसका पाचन तंत्र स्वाभाविक रूप से शाकाहारी भोजन के लिए बनाया गया है। किताबों की दुकानों और इंटरनेट पर उपलब्ध शोध और आंकड़ों के अनुसार शाकाहारी और मांसाहारी भोजन के बीच आज, पूरी बहस व्यावहारिक रूप से पूर्व के पक्ष में टिकी हुई है। साधारण ढ़ंग से कहते हुए, शाकाहारी भोजन पचने में आसान होता है; एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं, फाइबर होता है, विटामिन की एक भरपूर मात्रा, कैलोरी में कम, फैट में कम, शूगर में कम, और मधुमेह, ह्रदय रोग, मोटापा, हाइपरटेंशन और, अधिकतर सभी तरह के कैंसर होने की संभावना को कम करता है। कितनी ही साइट्स जिनमें अमेरिकन डाइटिक असोसिएशन, वर्ल्ड कैंसर रीसर्च फंड, और नेशनल हैल्थ एवं न्यूट्रीशन इग्जैमिनेशन सर्वे इस पर ज्ञान का खजाना रखे हुए हैं। अगर वह आपको मांसाहार खाने से अलार्म नहीं करते हैं यानी पूर्व संकेत नहीं देते हैं तो आइए योग के एक आकर्षक पहलू पर थोड़ा ध्यान दें जो भोजन की बात करता है।
बेहतर खाना, बेहतर मन बनाता है
आयुर्वेद भोजन को प्रोटीन या कार्बोहाइड्रेट आदि के रूप में वर्गीकृत नहीं करता है बल्कि, शरीर और मन पर इसके प्रभाव के अनुसार वर्गीकृत करता है।
यह भोजन को तीन गुणों के आधार पर वर्गीकृत करता है जो मानव जीवन को नियंत्रित करते हैं - सत्व, रजस और तमस।
- तामसिक भोजन सुस्ती या आलस्य पैदा करता है
- राजसिक भोजन गतिविधि या बेचैनी पैदा करता है
- सात्विक भोजन, जिसमें शुद्ध शाकाहार शामिल है, हल्कापन, ऊर्जा और सकारात्मकता पैदा करता है
ये तीनों गुण हमारे शरीर में अलग-अलग मात्रा में मौजूद हैं और हमारे मूड, भावनाओं और परिणामी स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव डालते हैं। एक प्राचीन आयुर्वेदिक कहावत है जो इसे सारांशित करती है - "जब आहार गलत हो तो दवा का कोई फायदा नहीं। जब आहार सही हो तो दवा का कोई फायदा नहीं।"
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वैज्ञानिक रूप से बोल रहे हैं, हमें भोजन दो कारणों से चाहिए होता है : जीने के लिए ऊर्जा पैदा करने के ईंधन के रूप में (प्राण) और शरीर की कोशिकाओं को पुन: उत्पन्न करने के लिए कच्ची सामग्री के रूप में। योग कहता है कि हमारा सिस्टम शरीर, मन और आत्मा का एक सहज मिश्रण है। शरीर में अनियमितता का असर मन पर पड़ता है और मन में बेचैनी शरीर में एक बीमारी के रूप में प्रकट होती है। यह देखा गया है कि सात्विक आहार के साथ योग का अभ्यास, असल में चमत्कार कर सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब कोई योग करता है, प्राणायाम करता है और इन्हें सात्विक भोजन के साथ पूरक करता है तो शरीर में प्राण का स्तर बढ़ जाता है। यह हमारे होने की एक हल्की-फुल्की, सकारात्मक, खुशी-भरी और सामंजस्यपूर्ण स्थिति पैदा करता है। वास्तव में, योगाभ्यास करने वालों में से बहुत-से लोगों ने अनुभव किया है कि योग के प्रमुख प्रभावों में से एक उनके शरीर और मन के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। यह उन लोगों को सात्विक, उच्च ऊर्जा पैदा करने वाले खाद्य विकल्पों की ओर उनकी प्राकृतिक प्रगति की अनुमति देता है। यह लगभग वैसा ही है जैसे शरीर अपने सहज तंत्र में लौटने की इच्छा रखता है जो कि शाकाहारी भोजन से जुड़ा होता है। इसका सबसे अच्छा प्रावरण, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जी ने किया है, जो कहते हैं, "जब आप अपने मन में सूक्ष्म हो जाते हैं और अपने दिल की गहराई में जाते हैं, आप स्वाभाविक रूप से शाकाहारी हो जाते हैं।" शाकाहारी भोजन के साथ योग की दैनिक खुराक का एक और अद्भुत लाभ यह है कि यह फिट रहने के, जवां दिखने के और दमकती त्वचा एवं बाल पाने के सबसे आसान तरीकों में से एक है। लेकिन, अधिक प्रसिद्ध शाकाहारी योगियों को उस उपभोग बिंदु को बनाने के लिए अनुमति देना समझदारी होगी।
(कौशानी देसाई, आयुर्वेदिक कुकिंग एक्सपर्ट और सेजल शाह, नैशनल कोर्डिनेटर, श्री श्री योग, भारत के इनपुट्स पर शताक्षी चौधरी द्वारा लिखित)