बाहरी मौन व आन्तरिक उमंग के उत्सव का, और आन्तरिक शांति और बाहरी उत्सव का एक सुखद सम्मिश्रण है आध्यात्म।
जब कभी मन में दुविधा हो, मन भ्रमित हो या व्याकुल हो तो योगाभ्यास करते ही हम पाते हैं मन में एकदम निश्चलता आ जाती है। योगासन का यही बड़ा प्रभाव है कि मन की सब दुविधाएँ और द्वन्द शान्त हो जाते हैं।
’ततो द्वन्द्वानभिघात:’ (पातंजलि योग सूत्र २-४८) मन का नकारात्मक बातों पर चिपकना- मन की वृत्ति है। परंतु योगासन व ध्यान की सहायता से मन सहज ही निराशा और नकारत्मकता से ऊपर उठ कर जीवन की आनंद भरी प्राणमयी शक्ति का अहसास करता है।
शरीर को ठीक रखने के लिये आसन होते हैं, और मन की मानसिकता व भावुकता को ठीक रखने के लिये प्राणायाम। शरीर के इलावा आसन मन के लिये भी लाभदायक हैं, और मन के साथ साथ प्राणायाम शरीर के लिये। दोनों के बीच में कोई स्प्ष्ट भेद नहीं है। ध्यान से आध्यात्मिक व्याकुलता, निराशा, खिन्नता और उदासीनता दूर होती है। इसीलिये कहा गया है - योग मन में चलने वाली सभी अनगिनत क्रियाओं को शांत करता है।
अब ध्यान करना है बहुत आसान ! आज ही सीखें !
’योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:’ (पातंजलि योग सूत्र १-२) योगाभ्यास करने से हमारे जीवन में भौतिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तरों पर आते सभी दुख दूर होते हैं। योग के अनुशासन में बँधे रहते सभी प्रकार के, ज्ञात या अज्ञात शारीरिक और मानसिक दुख दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है।
’हेयम दु:खम अनागतम’ (पातंजलि योग सूत्र २- १६) हमें अपने अन्त:करण की शुद्धि की आवश्यकता है। नींद लेकर हम अपनी थकावट तो दूर कर लेते हैं पर गहरे छिपे तनाव शरीर में बसे रहते हैं। ध्यान, योग और सुदर्शन क्रिया द्वारा हम चेतना की गहरी से गहरी परत को भी शुद्ध कर सकते हैं। तब हम अंदर से खिलते हैं और पूर्ण, शक्तिशाली और समग्र बनते हैं, वरना छोटी छोटी बातें व घटनाएँ हमें जीवन में विचलित कर देती हैं।
जब जीवन के आध्यात्मिक स्तर पर ध्यान दिया जाता है, तब एकता, ज़िम्मेदारी, करुणा और दया आदि के भाव समूचे मानवता के लिये हमारे मन में उजागर होते हैं।
ज्ञान, जो प्रेम और बुद्धि (दिल और दिमाग) को जोड़ता है, मन में आनंद भर देता है - वही आध्यात्मिकता है।
ज्ञान, जो हमें विशाल दृष्टिकोण और विशाल हृदय देता है, वही आध्यात्मिकता है।
जीवन एक अमूल्य उपहार है, और उपहार का आनंद तब मिलता है जब हम उसके ऊपर लपेटे रंगीन कागज़ से परे होकर खोजते हैं।