योग के बारे में (yoga)

स्कोलियोसिस की चिकित्सा योग द्वारा (Healing Scoliosis with Yoga)

स्कोलियोसिस क्या है| What is Scoliosis?

इंसान के रीढ की हड्डी विभिन्न कशेरूकाओं से मिलकर बनी होती है। ये कशेरूकाएं रीढ की हड्डी को सीधा रखने में मदद करती हैं। स्कोलियोसिस अर्थात पाश्र्वकुब्जता एक प्रकार की रीढ की हड्डी की बीमारी है, जिसमें व्यक्ति की रीढ की हड्डी सीधी न होकर दाएं, बाएं, आगे या पीछे मुड़ी हुई होती है। एक इंसान जिसकी रीढ की हड्डी दस डिग्री से ज्यादा मुड़ी हुई होती है वह इस बीमारी अर्थात स्कोलियोसिस का शिकार होता है। विश्व की संपूर्ण जनसंख्या के .5 प्रतिशत लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं। महिलाओं में इस तरह की बीमारी होने की संभावना अधिक होती है।

सुधार के उपाय (Corrective measures) | Posture correction: Scoliosis | स्कोलियोसिस

स्कोलियोसिस इंसान की गतिशीलता को बाधित करती है और उसकी क्षमताओं को कम करती है। इसमें बहुत दर्द भी होता है। आमतौर पर लोग स्कोलियोसिस होने पर सर्जरी करवाते हैं। परंतु सर्जरी करवाने से पहले बीमारी के अन्य उपचार के साधनों को जरूर परखना चाहिए। विभिन्न प्रकार के अन्य उपचारों में से योगा एक ऐसा उपचार है जो कि काफी लाभदायक है। योगा एक अति प्राचीन तकनीक है जो न केवल शारीरिक स्तर पर मदद करता है बल्कि मानसिक स्तर पर भी लोगों की काफी मदद करता है। योगा इस बीमारी से पीडि़त व्यक्ति को धैर्य और साहस दे उन्हें स्कोलियोसिस के दर्द से उभरने में मदद करता है।

परिवर्तन के लिए हौसले की ज़रूरत (Bracing for change) | स्कोलियोसिस के लिए प्राकृतिक उपचार

रीढ की हड्डी हमारे शरीर का अधिक से अधिक भार वहन करती है और इसलिए हमेशा तनाव में रहती है। स्कोलियोसिस के दौरान यह तनाव और दर्द बढ़कर असहनीय हो जाता है।योग हमारी टांगोें की मांसपेशियों को सुदृढ़ कर उन्हें ताकत प्रदान करता है और रीढ की हड्डी के तनाव को काफी हद तक कम करता है। योग के तहत सांस लेने की विभिन्न विधियों और विभिन्न आसनों की मदद से रीढ की हड्डी को मजबूती देने और पुनः आकार में लाने का प्रयास किया जाता है। हो सकता है शुरूआत में थोड़ा दर्द हो पर लम्बी अवधि में शरीर का आकार सही होताा है और दर्द न के बराबर रह जाता है। तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे योगआसनों के बारे में जो हमारे रीढ की हड्डी के आकार को सही कर स्कोलियोसिस से दूर रखेंगे या फिर स्कोलियोसिस के दर्द को कम करेंगे।

 

योग सीखें और बीमारियों से रहें दूर

 

१. योगासन

वीरभद्रासन 2

जैसे नाम से ही स्पष्ट है यह आसन साहस और शांति लाता है और पीठ के निचले हिस्से को मजबूत बनाता है।शरीर की संतुलन क्षमता को बढ़ाता है और सहनशक्ति में वृद्धि करता है। मजबूत पीठ और दृढ़ इच्छा शक्ति स्कोलियोसिस से लड़ने में सहायता प्रदान करते हैं।

त्रिकोणासन

इस आसन को खड़े होकर किया जाता है। इससे रीढ की हड्डी पर खिंचाव पड़ता है और यह शारीरिक व मानसिक संतुलन बढ़ाता है। यह आसन पीठ दर्द व तनाव को कम करता है।

मार्जरी आसन

इस आसन को इंग्लिश में कैट पोज़ भी कहा जाता है। यह आसन रीढ की हड्डी को लोचदार बनाता है, रक्तसंचार को अच्छा करता है और मन को शांत रखता है। जिन्हें स्कोलियोसिस की शिकायत है यह आसन उनके लिए काफी लाभदायक है।

बालासन

इसे बैठकर किया जाता है। यह आसन मस्तिष्क को शांत रखता है और पीठ को आराम पहुंचाता है। खासतौर पर यह आसन स्कोलियोसिस में बेहद लाभकारी है।

पश्चिमोत्तानासन

यह आसन पीठ के निचले भाग में खिंचाव लाता है और उसे तनावमुक्त करता है। यह आसन चिंता और थकान दूर कर मन को शांत करता है।

अधोमुख श्वान आसन

यह आसन रीढ की हड्डी की लंबाई को बढ़ाता है और पूरे शरीर को मजबूती देता है। खासतौर पर भुजाओें, कंधे, टांगें और पैर। इस आसन की मदद से शरीर के भार दोनों पैरों पर संतुलित मात्रा में बंटता है और रीढ की हड्डी के तनाव को दूर करता है।

सेतुबंधासन

यह आसन पीठ व पीठ की मांसपेशियों को मजबूती देता है। यह आसन चिंता व तनाव को दूर करता है और मस्तिष्क को शांत रखता है।

शलभासन

यह आसन पीठ को मजबूती देता है और लचक प्रदान करता है। यह आसन शरीर के तनाव, थकान और पीठ के नीचे भाग में दर्द को कम करता है।

सर्वांगासन

यह आसन रीढ की हड्डी को लचक प्रदान करता है। इसके साथ साथ हाथों और कंधों में भी मजबूती आती है। यह आसन मन को भी शांत करता है।

शवासन

सभी प्रकार के योगा आसन करने के पश्चात शव आसन को करना चाहिए। यह आसन शरीर को ध्यान की स्थिति में ले जाता है और नई उर्जा प्रदान करता है।

जब लंबे समय तक योगा को निरंतर किया जाए तो उसका प्रभाव हमें दिखने लगता है। धैर्य और निरंतर अभ्यास ही सफलता की कुंजी है। आप स्थानीय स्तर पर श्री श्री योगा कोर्स कर सकते हैं और स्कोलियोसिस के लिए अन्य योगा आसन को जान सकते हैं। यदि योग को एक समूह में किया जाए तो उसके अनेक लाभ होते हैं।

ध्यान दे: योगा में शारीरिक श्रम की आवश्यकता रहती है और इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमताओं को पहचान कर ही योगा करना चाहिए। अपने शरीर को बहुत ज्यादा तनाव नहीं देना चाहिए और अपनी सीमाओं से बाहर जाकर अभ्यास नहीं करना चाहिए। निरंतर योगा अभ्यास से आपकी क्षमता समय के अनुसार स्वतः ही बढ़ जाएगी।

2. सकारात्मक सोच | Positive Thinking

जि़दगी के प्रति सकारात्मक सोच अपनाकर स्कोलियोसिस को जल्दी व बेहतर ढंग से अच्छा किया जा सकता है। दोस्तों और परिवार की सहायता आपको सकारात्मक रहने में मदद करेगी और आप शीघ्र ठीक हो पाएंगे। निरंतर अपना अभ्यास करिए और अपने अभ्यास पर धैर्य और विश्वास रखिए।

3. प्राणायाम और ध्यान |Pranayama and meditation

yogic breath प्राणायम और नाड़ी शोधन प्राणायम फेफड़ों के फैलाव छाती की मांसपेशियों को मजबूत करने में सहायक होता है। पंचकोशा ध्यान स्थिति को स्वीकार करने, धैर्य व जागरूकता को बढ़ाने में मदद करता है। हरी ओम या चक्रा ध्यान शरीर के विभिन्न चक्रों व नाडि़यों को शुद्ध करने व प्राणों के निर्बाध प्रवाह में मदद करता है। ध्यान में बैठने पर दिक्कत होने पर यदि दीवार के सहार बैठकर ध्यान किया जाए तो काफी आसान रहता है।

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धैर्य ही सफलता की कुंजी है

अपनी क्षमताओं व सीमाओं का सम्मान करें। सकारात्मक सोच से मदद मिलती है

 

क्या आप किसी योगासन के बारे में जानना चाहते है? योगासनों की सूची एवं जानकारी हेतु

 

योग शरीर व मन का विकास करता है|इसके अनेक शारीरिक और मानसिक लाभ हैं परंतु इसका उपयोग किसी दवा आदि की जगह नही किया जा सकता| यह आवश्यक है की आप यह योगासन किसी प्रशिक्षित श्री श्री योग (Sri Sri yoga) प्रशिक्षक के निर्देशानुसार ही सीखें और करें| यदि आपको कोई शारीरिक दुविधा है तो योगासन करने से पहले अपने डॉक्टर या किसीभी श्री श्री योग प्रशिक्षक से अवश्य संपर्क करें| श्री श्री योग कोर्स करने के लिए अपने नज़दीकी आर्ट ऑफ़ लिविंग सेण्टर पर जाएं| किसी भी आर्ट ऑफ़ लिविंग कोर्सके बारे में जानकारी लेने के लिए हमें info@artoflivingyoga.org पर संपर्क करें।

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